अपने खेतन में पानी लाए,
आहर-पोखर, दुआर-अटारी
सब पोरे- पोर भींगाये.
धूल उड़ाती थी गौरैया,
रंभाते बछरू और गैया,
बेदम सारे लोग भये थे,
चारों पहर लथपथ से थे,
गाँव के धूसर चेहरे पर,
अब हरियाली खुशहाली लाये,
देखो सजनी! उमड़-घुमड़ अब मेघ
घहराए.
पेड़, अंगना–दुआर सब चकचक
भये,
तार बिजली से टप-टप मोती
चुए,
ताल-तलैया सभी को आईना दिखाएँ,
गोरी रोज देख अपनी काया
शरमाये,
चहकती हैं आजकल तुम्हरी सब सखियाँ,
गाँव के नवेले जो पाहुन आए.
देखो सजनी! उमड़-घुमड़ अब मेघ
घहराए.
-नवनीत नीरव-
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