वह रोती है,
चुप- सी रातों में,
उत्सव की शुरुआत में,
अपनी बेटी की खुशी में,
उसके चले जाने के गम में,
वही बेटी,
जिसकी सुध उसने कभी न ली.
लेती भी भला कैसे?
वह तो परेशान रही,
अब तक,
अपने पति, अपने परिवार से,
जो उसका न था,
न जाने जिसने क्यों,
उसका परित्याग किया हुआ है.
सहसा चिल्लाते हुए कुछ कहती है-
सबने मुझे दबाया है,
मुझे बोलने भी न दिया,
फिर वही लोग ,
अब चाहते है मुझसे,
मेरी बेटी को भी छीनना.
फिर वह खामोश हो जाती है,
आख़िरकार चुप ही तो रही है वो ,
इतनी परेशानियों के बाद भी,
जो आज तक रोयी नहीं थी,
फिर न जाने आज क्यों,
वह रोती है.......
-नवनीत नीरव-
2 टिप्पणियां:
अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं बधाई।
Amazing............
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