मंगलवार, 1 जून 2010

पैरों के निशान

सब कुछ तो अचानक ही हो गया,

जैसे कोई ख्वाब सुबह में घुल गया,

कुछ भी तो न बचा,

हमारे तुम्हारे दरम्यान,

सिर्फ,

स्याह सन्नाटे और रिक्तता के,

मानों इस समंदर के शोर में,

सब कुछ हो दब गया,

मैं देखता रहा अपलक,

तुम्हारे और मेरे शरीर के,

बीच की दूरी को,

विस्तार लेते हुए,

न जाने कितनी बातें,

अनकही रह गयीं,

दिल में रह गए,

कितने अरमान,

स्तब्ध सा खड़ा रहा गया मैं,

समंदर किनारे रेत पर,

निहारते हुए,

तुम्हारे पैरों के निशान।


-नवनीत नीरव-

3 टिप्‍पणियां:

आचार्य उदय ने कहा…

आईये, मन की शांति का उपाय धारण करें!
आचार्य जी

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्ति

Unknown ने कहा…

Thokar Ke Bina Log Guzar Kyun Nahin Jatey
Pathar Ho Muqabil To Thehar Kyun Nahin Jatey