मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

अब दर्द नहीं जाता

कितना भी मुस्कुरा लें, अब दर्द नहीं जाता,
अक्सर रात को तन्हा चाँद,मुझको तन्हा कर जाता

चंद बादलों से मिलकर, अब भी रो देता है आसमां,
सच है अपनों के मरहम से, इक दर्द नहीं जाता

जब भी जाना है सहरा को ,वो खूबसूरत ही लगता है,
जब तक कोई काफिला, यहाँ भटक नहीं जाता

ये सच है सर्द रातें, रहमदिल नहीं होती,
वर्ना कोई चाहने वाला, क्यों सर्द हो जाता

जब जख्म बनाये हैं, मिरे पैरों में खुद के जूते,
किसी चाहने वाले को अब, वो दिखाया नहीं जाता

-नवनीत नीरव -

2 टिप्‍पणियां:

प्रिया ने कहा…

Navneet aapki rachna...mein gazal jaisi abhivyakti dikhi....lekin ye gazal nahi....par bhavv acchey hai....umeed hai aap bura nahi maanege

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छे भाव!!