अपने बसेरे से,
कि वापस लौटना अब मुमकिन नहीं,
मन तो कहता है,
चल मिल आयें अपनों से,
पर दिल है कि इजाजत ही नहीं देता ।
कितने अरमां लिए हम,
निकले हैं अपने घर से,
नए आशियाने की तलाश ने,
दूर किया हमें अपने जन से,
हर दिशा में एक रोशनी की तलाश,
हर रोज जारी है,
पर अँधेरा इतना गहरा है
कि छंटने का नाम नहीं लेता।
आकाँक्षाओं के भार तले
कभी-कभी घुटन सी होती है,
यादें स्मृति पटल पर छा जाती हैं।
मन तो कहता है,
चल मिल आयें अपनों से
पर दिल है कि इजाजत ही नहीं देता।
वापस लौटने की इच्छा दूध उफान सी,
पर एक ही बात काम करती है,
शीतल जल के बूंदों सी,
क्या कहूँगा?
क्यों लौट आया मैं?
बड़े उत्साह से जो स्वप्न संजोया,
क्यों उसे तोड़ आया मैं ?
अब तो उम्र नहीं है बचपन की,
जो लोग सुनेंगे हमारी बातें,
सामने तो सिर्फ चेहरे के भाव बदलेंगे,
पीठ -पीछे तानों के तीर चलेंगे,
सारी संवेदनाएं तो मर चुकी हैं,
भावनाएं कभी -की लुट चुकी हैं,
रह-रहकर अपनों के ,
हताश चेहरे नजर आते हैं,
क्यों अरमान संजोये थे जतन से,
जो रेत में दफ्न हुए जाते हैं।
मन तो कहता है
चल मिल आयें अपनों से
पर दिल है कि इजाजत ही नहीं देता।
वापस लौटने से क्या हासिल होगा,
थोड़ा-सा प्यार, स्नेह दुलार,
जो समय के साथ घटता जायेगा,
घसीटने के बाद छोड़ दिया जायेगा ,
कुछ के मन में स्नेह तो रहेंगे,
पर आधार औ आलम्ब के बिना,
वे कुछ न कर सकेंगे,
मेरी कमजोरियां उनका बोझ हो जायेंगी,
जिंदगी सोच और चिंताओं में गुजर जायेगी,
अब रह -रह कर एक ही बात,
जेहन में आती है,
"एक मौत हमारी दुश्मन थी,
अब जिंदगी भी हमारी सौत बनी"
आज तोड़ दे यह मोह का बंधन,
वर्त्तमान से निभाता रह दोस्ती,
राह के साथ तू चला चल,
एक दिन अवश्य पा जायेगा मंजिल।
-नवनीत नीरव-
9 टिप्पणियां:
चल मिल आयें अपनों से
पर दिल है कि इजाजत ही नहीं देता। ...or bina mile manta bhi nahi.....
ek bar ghar ko alwida kahne ke baad lautna schmuch itna aasaan nahi hota....btfl
कारवां कितना ही सुकून दे घर नहीं होता
चलते कदम, कभी भी सफर मंजिल नहीं होता
एक संघर्षरत उवा के मन का अन्तर्दुअन्द साफ झलकता है इस कविता मे बहुत सुन्दर अन्त सकारात्मक अच्छा लगा। हिम्मत यूँ ही बनी रहे आशीर्वाद्
युवा मन की त्रासदी की सार्थक अभिव्यक्ति।
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11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?
युवा मन की त्रासदी की सार्थक अभिव्यक्ति।
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11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?
अब जिन्दगी भी हमारी सौत बनी....
बहुत सुन्दर गहरी रचना! वाह!
sahi......hai ghar se doori wahi samajha sakta hai jo door ho.....aapne apni vyatha bakhoobi likhi
awashya payega manzil bahut khoob
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