आज फिर सुबह हुई,
निरभ्र खुला आसमान,
ठंढी हवाएं,
धीमी -धीमी गुनगुनाती हुई।
छिट-पुट बादलों से छनकर,
सीधे बदन को छूती
सूरज की किरनें,
पंछियों के कलरव,
वातावरण का धीमा शोर,
और न जाने कितना कुछ ।
पर कल ऐसा नहीं था,
ये सब कुछ खामोश था ,
दहशत की चादर में लिपटा,
एक अनजाने भय से,
आज जाने क्या होगा?
आज सुबह से ही,
देख रहा हूँ
वातावरण जैसे उत्सव मना रहा है।
एक-एक करके लौट रहीं हैं,
रंग बिरंगी बसें,
जैसे चिड़ियों का झुण्ड,
उन्मुक्त उड़ता चला आ रहा हो,
सुदूर अंचल से.
कर्तव्य निष्ठ लोग,
बहादुर भारतीय जवान,
और कुछ लोग,
जो अनजाने ही ,
इसका हिस्सा बन गए,
सभी के चेहरे पर,
एक सुकून है ,
एक खुशनुमा सुकून ।
सबके चेहरे की ताजगी,
मुझे भी अपनेपन की ख़ुशी दे रही है,
एक सुखद अहसास जताते हुए ,
बार-बार यही कहते हुए,
लौट आई जिंदगी,
अपने घर आई जिंदगी। ।
-नवनीत नीरव-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें