शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

एक दीया, मेरे दोस्त तुम भी जलाना.....

अमावस की रात, जब अँधेरी हो जाती है,

स्याह -सा लगता है, यह सारा जमाना,

तवे पर जब कभी कालिख जम जाये,

मुश्किल होता है तब उसको मिटाना,

एक दीपशिखा जो युगों तक जलती है,

अनवरत संसार के हर तम् हरती है,

हर बार दीयों की कोशिश यही होती है,

मिलकर संसार से है अँधेरा मिटाना।

एक ही गुजारिश तुमसे इस बार,

एक दीया, मेरे दोस्त तुम भी जलाना।।


जब -जब मन के फासले बढेंगे,

कहाँ पुराने रिश्ते अच्छे हाल में रहेंगे?

अँधेरा रहता है इस ताक में बैठा,

लोग कब एक दूजे से उलझेंगे,

अक्सरहां गिला हम कर जाते हैं उनसे,

करीब जो लोग हमारे होते हैं सबसे,

मन के दरमयां जो अँधेरा है फैला,

कोशिश हो उसको हर हाल में मिटाना

गुजारिश है तुमसे, कोई दिल दुखाना,

एक दीया,मेरे दोस्त तुम भी जलाना।।

-नवनीत नीरव-




7 टिप्‍पणियां:

sanjay vyas ने कहा…

सुंदर सन्देश.आपको दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं.

Vandana Singh ने कहा…

gr888 thought and too good messege navneet ji .diwali ki hardik shubkamnaye ...

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन रचना!!

सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

सादर

-समीर लाल 'समीर'

प्रिया ने कहा…

bahut sunder! aapki appeal ki sunwaai ho gai....ham to kab se jala kar baithe hai :-)

Shashi Kant Singh ने कहा…

bahut hi rochak aur sukhad andaj hai aapke sir ji.
achchha laga....
maa lakshmi ki kripa aapme hamesha bani rahe..

Creative Manch ने कहा…

बहुत सुन्दर और बेहतरीन रचना
हार्दिक शुभकामनाएं.


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