(मैं अपनी समर ट्रेनिंग के लिए इस बार देहरादून में था। रात में गेस्ट हॉउस की छत से मसूरी दिखाई देती थी। उसी को देख कर मैंने कुछ पन्तियाँ लिखी हैं । ये पंक्तियाँ उस समय लिखीं गई हैं जब तक मैं मसूरी नहीं गया था ।)
शाम ढलते ही कौन छिड़क जाता है,
रंगीन सितारे पहाड़ी बदन पर तुम्हारी,
पूछता है व्याकुल हो देहरादून,
निहार कर तेरी सुन्दरता ओ मसूरी।
हर रोज देखता हूँ नए अजनबी चेहरे,
शाम ढले लौटते हैं तुझसे जब मिलके,
करते हैं हरदम सब तेरी ही बातें,
कुछ सुन्दरता की औ कुछ अन्तरंग यादें,
फासले कहाँ है हमारे बीच मीलों के ,
बरसों निभाता रहा हूँ तुझसे यारी,
मिलने की हसरत दबाये हूँ कबसे,
फ़िर भी न मिटा सका यह दूरी ।
पूछता है व्याकुल हो देहरादून,
निहार कर तेरी सुन्दरता ओ मसूरी।
सुनता हूँ अक्सर तेरी ही बातें,
रंगीन मौसम तुझसे मिलने हैं आते,
अमलतास और गुलमोहर के झुमके,
वर्षा बसंत मिलजुलकर हैं पहनाते,
चश्में औ झरनों की पूछ है बढ़ जाती,
जब तुम बदरिया की चुनरी लहराती,
ये मेरा वहम है या फिर कुछ और,
जब भी देखता हूँ तुम लगती हो प्यारी,
पूछता है व्याकुल हो देहरादून,
निहार कर तेरी सुन्दरता ओ मसूरी।
जब मसूरी घूमने गया तो एक ही सवाल मैंने किया ........
सफ़ेद सफ़हे सी चादर ओढे,
चिरहरित पत्तों का घूंघट डाले,
निहारती जाती हर सैलानी को,
आने वाले हर मानी को,
हर कोई दीवाना यहाँ पर,
क्या तुम ही पहाड़ों की रानी हो ?
-नवनीत नीरव-
शाम ढलते ही कौन छिड़क जाता है,
रंगीन सितारे पहाड़ी बदन पर तुम्हारी,
पूछता है व्याकुल हो देहरादून,
निहार कर तेरी सुन्दरता ओ मसूरी।
हर रोज देखता हूँ नए अजनबी चेहरे,
शाम ढले लौटते हैं तुझसे जब मिलके,
करते हैं हरदम सब तेरी ही बातें,
कुछ सुन्दरता की औ कुछ अन्तरंग यादें,
फासले कहाँ है हमारे बीच मीलों के ,
बरसों निभाता रहा हूँ तुझसे यारी,
मिलने की हसरत दबाये हूँ कबसे,
फ़िर भी न मिटा सका यह दूरी ।
पूछता है व्याकुल हो देहरादून,
निहार कर तेरी सुन्दरता ओ मसूरी।
सुनता हूँ अक्सर तेरी ही बातें,
रंगीन मौसम तुझसे मिलने हैं आते,
अमलतास और गुलमोहर के झुमके,
वर्षा बसंत मिलजुलकर हैं पहनाते,
चश्में औ झरनों की पूछ है बढ़ जाती,
जब तुम बदरिया की चुनरी लहराती,
ये मेरा वहम है या फिर कुछ और,
जब भी देखता हूँ तुम लगती हो प्यारी,
पूछता है व्याकुल हो देहरादून,
निहार कर तेरी सुन्दरता ओ मसूरी।
जब मसूरी घूमने गया तो एक ही सवाल मैंने किया ........
सफ़ेद सफ़हे सी चादर ओढे,
चिरहरित पत्तों का घूंघट डाले,
निहारती जाती हर सैलानी को,
आने वाले हर मानी को,
हर कोई दीवाना यहाँ पर,
क्या तुम ही पहाड़ों की रानी हो ?
-नवनीत नीरव-
9 टिप्पणियां:
बहुत ही मनोहारी चित्रण ..........अतिसुन्दर रचना ..........धन्यावाद मसूरी की यात्रा करवाने के लिये..
बहुत सुन्दरता से चित्रण किया है उस नजारे का.
behad khoobsoorat ......man moh liya
waaaaaaaaw awesom ....bahut hi sunder
पहाडों पे कितने रंग मौसम के दिखने लगते है ...ये लिखी पंक्तियों में झलक रहा है अच्छा है, बधाई
http://som-ras.blogspot.com
सौंदर्य की तारीफ बहुत भावपूर्ण
yes!!!!!!!!!!!!! hamara dehradoon hai hi itna pyara .ek tarf jamna bahti hai vikas nagar mai to dusri taraf ganga haridwar rishikesh mai .......paharo ki rani hai yaha ..mousam to kya kahe ......bhole bhale seedhe sade log .ek sukoon hai yaha ki aabo hawa mai ........... kabhi ek rat bitai dhanolti mai ............... jannat ka sa maza milta hai waha lotkar aane ka man hi nhi karega kisi ka ..........superb ,awesome post .thnx a lot
yes!!!!!!!!!!!!! hamara dehradoon hai hi itna pyara .ek tarf jamna bahti hai vikas nagar mai to dusri taraf ganga haridwar rishikesh mai .......paharo ki rani hai yaha ..mousam to kya kahe ......bhole bhale seedhe sade log .ek sukoon hai yaha ki aabo hawa mai ........... kabhi ek rat bitai dhanolti mai ............... jannat ka sa maza milta hai waha lotkar aane ka man hi nhi karega kisi ka ..........superb ,awesome post .thnx a lot
Kudrat ne jyada fursat se banaya hai en wadiyou ko
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