मंगलवार, 12 मई 2009

पानी की खोज में .....


(गर्मी अपने चरम पर है। सारे ताल -तलैया सूख चुके हैं सबसे ज्यादा परेशानी उन महिलाओं को होती है जिन्हें अपने घर से दूर किसी ताल या कुएं से पानी लाना पड़ता है ऐसी ही एक स्त्री है जो पानी लाने के लिए गाँव से दूर किसी तालाब पर जा रही है)

सिर पर लिए छूछी गगरिया,
संग सहेलियां उनकी अठखेलियाँ,
चली जा रही मैं ,
दूर किसी ताल की तरफ,
पानी की खोज में

तीक्ष्ण धूप से तन हुए श्यामल,
बदरंगी हुई जाती है,
मोरी चुनरिया,
कोई उन कारे मेघों से कह दे,
बरसो कभी तो म्हारो गाँव
तुम्हरी बिजुरियों को छीन के,
बाँधूंगी अपनी चढ़ती उमरिया,
जो ढलती जा रही है,
दिनभर भटकते हुए,
पानी की खोज में ....

-नवनीत नीरव-

6 टिप्‍पणियां:

ghughutibasuti ने कहा…

बहुत सुन्दर! अन्तिम चार पंक्तियाँ बहुत अच्छी हैं।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari ने कहा…

भावपूर्ण-बेहतरीन अभिव्यक्ति!

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति .. बधाई।

प्रिया ने कहा…

jeevant kar dala shabdo ke madhyam se

sanjay vyas ने कहा…

बहुत उत्तम.पूरी कविता में प्रयुक्त बिम्ब ताजगी लिए है और बीच बीच में आंचलिक शब्द लुभाते है.

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

सामयिक कविता के बधाई