है ज़रूरत अब ज़मानेको जगाने की,
रद्दी कागजों के ढेर को जलाने की,
आंखों में धुआँ चुभता है जरूर ,
सिखाता है बातें गलतियाँ भुलाने की।
जली बस्तियां उदास नज़र आती हैं,
हवाएँ पुराने जख्म कुरेद जाती हैं ,
उदास आंखों के अश्क सूख जाएंगे,
कोशिश हो नई बस्तियां बसाने की।
कुछ ऐसा करें खुशी अपने घर आये,
जंगल से निकल वसंत बस्तियों में छाये,
नई कोंपलें फूटे, बहे मस्त बयार ,
रुत की कोशिश हो गलियां सजाने की ।
शाम को घरों में आशा दीप जलें ,
रात भर जोश भरी पुरवाई चले,
सो जाएँ चाँदनी की थपकियों के संग,
हर सुबह हो हमारे नए विचारों की ।
-नवनीत नीरव-
2 टिप्पणियां:
acchi kavita....... inspirational hain.....sahi hain kisi ko to pahal karni hi padegi
wakai naya bichar hai
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