बुधवार, 22 अप्रैल 2009

पहल

है ज़रूरत अब ज़मानेको जगाने की,
रद्दी कागजों के ढेर को जलाने की,
आंखों में धुआँ चुभता है जरूर ,
सिखाता है बातें गलतियाँ भुलाने की

जली बस्तियां उदास नज़र आती हैं,
हवाएँ पुराने जख्म कुरेद जाती हैं ,
उदास आंखों के अश्क सूख जाएंगे,
कोशिश हो नई बस्तियां बसाने की

कुछ ऐसा करें खुशी अपने घर आये,
जंगल से निकल वसंत बस्तियों में छाये,
नई कोंपलें फूटे, बहे मस्त बयार ,
रुत की कोशिश हो गलियां सजाने की

शाम को घरों में आशा दीप जलें ,
रात भर जोश भरी पुरवाई चले,
सो जाएँ चाँदनी की थपकियों के संग,
हर सुबह हो हमारे नए विचारों की

-नवनीत नीरव-

2 टिप्‍पणियां:

प्रिया ने कहा…

acchi kavita....... inspirational hain.....sahi hain kisi ko to pahal karni hi padegi

Mai Aur Mera Saya ने कहा…

wakai naya bichar hai