कोई मेरे बचपन का घर बना दे,
यादों की तस्वीरें दीवारों पर चिपका दे ,
बरबस याद आ जाती हैं कभी जो,
अनजानी राहों पर चलना सिखा के ।
छुप कर न जाने क्यों रोया करता,
अंधेरे में बिस्तर से ख़ुद को छिपा के ,
छोटी सी बात पर जो उमड़ आती दिल से ,
मधुर सिसकियों की वो घंटियाँ दरवाजे से लटका दे ।
दौड़ता भागता कितनी तितलियों के पीछे,
उनके चटकीले पंखों का आमंत्रण पा के,
खुले मैंदान से निहारता अकसर सूरज को ,
कोई उसकी किरणों से बत्तियां जला दे ,
अक्सर भाग जाता हरे खेतों की तरफ़ ,
चुपके से ख़ुद को सबसे छुपा के ,
सरसों औ अरहर के प्यारे पीले फूलों से ,
कोई हर कोने में फूलदानों को सजा दे ।
क्या बताऊँ कैसे करता था बेबाक नादानियाँ ,
सपनों का हकीक़त से सामना करा के ,
गुस्सा हो जा बैठता जिस आम तले ,
कोई उसकी बोनसाई बालकनी में लगा दे ।
जिनके संग करता रहा मनमानी ,
बिछडे उन दोस्तों को मुझसे मिला दे ,
प्यारी नानी औ उसकी परियों की कहानियाँ ,
कोई प्यार से मुझको फिर से सुना दे ।
कई बार बनाई हैं रंग बिरंगी नावें,
कापी के पन्नों से हर सावन में ,
कहीं भूल न जाऊं इन प्यारे ख्वाबों को,
कोई इन तहरीरों की गठरी बना दे ।
यादों की तस्वीरें दीवारों पर चिपका दे ,
बरबस याद आ जाती हैं कभी जो,
अनजानी राहों पर चलना सिखा के ।
छुप कर न जाने क्यों रोया करता,
अंधेरे में बिस्तर से ख़ुद को छिपा के ,
छोटी सी बात पर जो उमड़ आती दिल से ,
मधुर सिसकियों की वो घंटियाँ दरवाजे से लटका दे ।
दौड़ता भागता कितनी तितलियों के पीछे,
उनके चटकीले पंखों का आमंत्रण पा के,
खुले मैंदान से निहारता अकसर सूरज को ,
कोई उसकी किरणों से बत्तियां जला दे ,
अक्सर भाग जाता हरे खेतों की तरफ़ ,
चुपके से ख़ुद को सबसे छुपा के ,
सरसों औ अरहर के प्यारे पीले फूलों से ,
कोई हर कोने में फूलदानों को सजा दे ।
क्या बताऊँ कैसे करता था बेबाक नादानियाँ ,
सपनों का हकीक़त से सामना करा के ,
गुस्सा हो जा बैठता जिस आम तले ,
कोई उसकी बोनसाई बालकनी में लगा दे ।
जिनके संग करता रहा मनमानी ,
बिछडे उन दोस्तों को मुझसे मिला दे ,
प्यारी नानी औ उसकी परियों की कहानियाँ ,
कोई प्यार से मुझको फिर से सुना दे ।
कई बार बनाई हैं रंग बिरंगी नावें,
कापी के पन्नों से हर सावन में ,
कहीं भूल न जाऊं इन प्यारे ख्वाबों को,
कोई इन तहरीरों की गठरी बना दे ।
-नवनीत नीरव -
11 टिप्पणियां:
पुरानी यादें वाह जी अच्छे शब्द पिरोये हैं आपने
आप सभी को बैसाखी पर्व दी लख लख बधाईयां
Behad sundar.." koyi in tehreeronkee gatharee bana de.."!
Mere "Kavita" blogpe "wo ghar bulata hai", is sheershak tale ek kavita hai...samay mile to zaroor padhen...aapki tippanee to dekhee thee usee blogpe lekin, shayad us kavitake neeche nahee...
snehsahit
Shama
bahut hi umda rachna mujhe bahut pasand aayi
vaise bhi achcha to aap likhte hi ho .
bahut hi umda rachna mujhe bahut pasand aayi
very nice, is it inspired by Jagjit singh's woh bachpan ka sawan? even if it is..the rendition is completely yours..liked the "tehreeron ki gathree" lines a lot..good job!! keep writing all the best
very nice, is it inspired by Jagjit singh's woh bachpan ka sawan? even if it is..the rendition is completely yours..liked the "tehreeron ki gathree" lines a lot..good job!! keep writing all the best
नीरव जी आपने तो सीधा चौका ही लगा दिया....अच्छी रचना के लिए मेरी बधाई....!!
bachapan ki sari yaadon ko bahut hi achche se vyakat kiya hai aapne..
madhur yaad bachpan teri........ lajawab!
,, bahut si bate hai jo mujhe pasand hai.. kiu ki wo mere jaise hai
एक टिप्पणी भेजें