
रोशनी के लिए ....
माथे पर दीयों की टोकरी लिए
चली जा रही मैं सोचते हुए
आज कुछ दीये बिक जाएँ तो
कितने ही दीप रोशन होंगे
छतों की अटारी पर
घरों की ड्योढी पर
कितने ही दीपों की पंक्तियाँ सजेंगी
बच्चों के मन में उमंगें जगेंगी ।
कुछ आशाएं तो मेरे मन में भी हैं
पर उनपर एक स्याह धुंध सी है
घर के सफाई की ,माँ के दवाई की
छोटी बहन और भाई के पढ़ाई की ।
कितनी अँधेरी रात है मेरे चारों तरफ,
बालमन के कश्मकश और जिम्मेदारी की।
यदि कुछ दीये बिक जाएँ तो
कुछ रोशनी जरूर होगी
समाज के साथ मेरे घर में
इसी कामना को लिए
चली जा रही मैं दीयों के साथ
एक अदद रोशनी के लिए ।
नवनीत नीरव
1 टिप्पणी:
shabd komal hai par is mein chipe arth nhi...bahut achi rachna hai.
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