शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2008

हम - तुम


हम- तुम
मन की कोई बात बताओ मुझको तुम ,
रहती हो खामोश सदा अक्सर गुमसुम ,
कभी- कभी ही दिख पाती है मुस्कान तुम्हारी
दिल ही दिल में क्या बुनती रहती हो हरदम
यही सोचता रहता हूँ मैं कभी तो बातें होंगी
मन को हलकी करने वाली कुछ मुलाकातें होंगी
जज्बातों को काबू करना कोई तो सीखे तुमसे
उम्मीदों को ख्वाब बनाना कोई तो सीखे तुम से
आओ कोई बात करें और साथ चलें हम- तुम
एक नए सफर की शुरुआत करें हम- तुम ।

-नवनीत नीरव

2 टिप्‍पणियां:

sachin ने कहा…

bahot khub dost...mein tumhara fan ban gaya huin

Unknown ने कहा…

bahut accha sir....