पहली बार,
जब मैं प्रेम में पड़ा,
उन्हें पता चला
उन्होने मेरे कान में कोई मंत्र फूँका
“जवानी के चौखट पर यह सबके साथ होता है।“
कोई टूटता रहा,
मैं साबुत बच गया।
उन्हें पता चला
उन्होने मेरे कान में कोई मंत्र फूँका
“जवानी के चौखट पर यह सबके साथ होता है।“
कोई टूटता रहा,
मैं साबुत बच गया।
दूसरी बार
जब मैं प्रेम में पड़ा,
उन्हें मालूम हुआ,
उन्होने मुझे एक जंतर दिया,
“घर की इज्जत तो पलीत न करो।“
कोई तबाह हुआ,
मैं फिर बच गया।
जब मैं प्रेम में पड़ा,
उन्हें मालूम हुआ,
उन्होने मुझे एक जंतर दिया,
“घर की इज्जत तो पलीत न करो।“
कोई तबाह हुआ,
मैं फिर बच गया।
मुझे फिर प्रेम हुआ,
जवानी की चौखट के ठीक बाहर,
उन्हें मालूम था,
उन्होने हवन कराया,
मेरी कुंडली दिखाई,
कुंडली में नीच ग्रह का स्वामी केतू बैठा था।
अबके बार कोई नाव किनारे लगी,
वे हताश थे।
जवानी की चौखट के ठीक बाहर,
उन्हें मालूम था,
उन्होने हवन कराया,
मेरी कुंडली दिखाई,
कुंडली में नीच ग्रह का स्वामी केतू बैठा था।
अबके बार कोई नाव किनारे लगी,
वे हताश थे।
सचमुच, प्रेम करना एक नीच कर्म है।
-नवनीत नीरव-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें