सोमवार, 19 मई 2014

जिंदगी: एक किताब

किताब के पहले सफ़हे पर,
नाम काट कर किसी का,
उसने लिख दिया है मेरा नाम,
अब वो किताब अपनी है...

छोड़ आया जिसे मैं बिना वजह,
कल ख्वाब वो दोराहे पर मिली,
एक समंदर उफनता रहा रात भर,
सुबह एक बदली बरसी है...

दिल भी न जाने क्यों गढ़ता है,
बेवजह, बिना मतलब के मुहावरे,
प्यार चुक जाता है एक ही बार में,
शेष बस जिन्दगी गुजरी है...

-नवनीत नीरव-

1 टिप्पणी:

Mithilesh dubey ने कहा…

क्या बात है। सुन्दर अभिव्यक्ति।