हवाओं
की सरसराहट संग फिसलता हूँ मैं,
न कोई
उम्मीद, न आरजू, न जीने का फलसफा,
आधी
उम्र बीती, न जाने कब से ऐसा ही हूँ मैं.
खुदगर्ज,
आत्ममुग्ध, अतार्किक,स्वाभिमानी,
नाउम्मीद,
फजीहतजदा, अकेलेपन का खुद ही मानी,
अपने
कुनबे तक रही दुनिया मेरी आजतक ,
कभी-कभार
ही ऊब कर बाहर निकलता हूँ मैं.
अक्सरहां
सुनता हूँ नारे जयघोष इधर-उधर,
कभी
विरोध प्रदर्शन के उग्र कभी तीखे स्वर,
बुद्धू
बक्सा, चौथे खम्भे अपनों का ख्याल गायें,
आखिरी आदमी हूँ खुद में ही बंद रहता हूँ मैं.-नवनीत नीरव -
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