कुछ ख्याल इस तरह मिलते हैं मुझको,
राह में चंद शुष्क पत्ते औंधे पड़े हों.
खुशियाँ मिलतीं इसकदर तोहफे में अक्सर,
हिचकियों संग आ रही मुस्कान हों.
साथ उनका कुछ पहर मिल जाता है,
धूप मिरे साये पे जब मेहरबान हो.
रात भी खुदगर्ज है आती तो रहती देर तक,
टांक जाती रोज तारे ज्यों अपना आकाश हो.
चाहतें दहलीज आके कोसती रहती हैं मुझको,
एक दस्तक पर खुले कैसे जो दरवाजा जाम हो.
सहते हैं सितम एक ही ख्वाहिश की खातिर हम,
शायराना महफ़िलों में आखिरी सलाम हो .
- - नवनीत नीरव -
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