रविवार, 28 नवंबर 2010

ख्वाबों के छुट्टे

बचपन से युवा बनते-बनते,
जाने कितने सयाने,
कितने बड़े ख्वाब,
संजोये थे मैंने ,
कोशिश यही थी कि,
कभी इनसे,
कोई बड़ी खुशी खरीदूंगा.
कई सालों तक इन्हें,
संभाल कर रखता रहा,
इन्हें खर्च करने से बचता रहा,
डर था कहीं इनके खुले हो गए तो,
ये सारे छोटी-छोटी खुशियों में ही,
जल्दी ही खर्च हो जायेंगे .
जाने कितने अपनों ने,
मुझे जानने वालों ने,
उधार पर मेरे ख्वाब मांगे ,
पर बड़ी ही निष्ठुरता से मैंने,
मना कर दिया उनको हर बार,
कई बार रस्ते बदल दिए मैंने,
जिधर मांगने वाले मिलते,
इतने सालों बाद,
हालात से उलझने के बाद,
अब ये समझ में आया,
छोटी-छोटी खुशियों से ही,
बड़ी खुशी मिलती है,
आज चाहता हूँ
हर छोटी खुशी समेटना,
पर किसी के पास,
मेरे बड़े ख्वाबों के छुट्टे नही हैं.

-नवनीत नीरव-

7 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...छोटी छोटी खुशियों को नहीं गंवाना चाहिए ...बड़ी तो कभी मिलती ही नहीं

Vandana Singh ने कहा…

bahut sunder navneet ji ..ye adhikatr aaj ke jeevan me sabhi k saath hota hai ::)

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी इस रचना का लिंक मंगलवार 30 -11-2010
को दिया गया है .
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

हालात से उलझने के बाद,
अब ये समझ में आया,
छोटी-छोटी खुशियों से ही,
बड़ी खुशी मिलती है,
आज चाहता हूँ
हर छोटी खुशी समेटना,
पर किसी के पास,
मेरे बड़े ख्वाबों के छुट्टे नही हैं.

मेरे बड़े ख्वाबों के छुट्टे नहीं हैं..... बेहतरीन...
कमाल की पंक्तियाँ हैं....

केवल राम ने कहा…

इतने सालों बाद,
हालात से उलझने के बाद,
अब ये समझ में आया,
छोटी-छोटी खुशियों से ही,
बड़ी खुशी मिलती है,
...इन पंक्तियों ने कविता की विषय वस्तु में जान डाल दी ...बहुत सुंदर कविता
चलते -चलते पर आपका स्वागत है

vandana gupta ने कहा…

बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति।

अनुपमा पाठक ने कहा…

छोटी छोटी खुशियाँ ही मायने रखती हैं!
सुन्दर रचना!