रात्रि के प्रस्थान के साथ,
मैं देख रहा हूँ,
एक दुल्हन की विदाई,
डूबा है पूरा परिवार गम में,
दुल्हन की सिसकियों के साथ,
आंसुओं से नम है,
पिता का रोबीला चेहरा,
और माँ की है,
आंसुओं की बरसात।
बहने और सम्बन्धियों की भी,
सुनी जा सकती है सिसकी,
समुद्र के सामान गंभीर भाई की आँख,
अब छलकी की तब छलकी।
धीरे-धीरे दुल्हन के साथ,
समय भी हो रहा है विदा,
ह्रदय को विदीर्ण कर रही,
सबकी एक ही अदा,
बचपन से लेकर आजतक,
बहन के प्यार से है जो बंधा,
भरी मन से उसी भाई ने,
दिया डोली को कंधा।
दुल्हन के साथ –साथ,
बारात भी चली गयी,
जाते- जाते गमों की,
सौगात छोड़ गयी,
देख कर इस दृश्य को,
मेरी भी आँख भर आयी,
किसी ने पूछ ही लिया,
क्या देख रहे हो?
अनायास ही निकल पड़ा,
मेरे मुंह से,
किसे दुखी नहीं करेगी यह विदाई,
2 टिप्पणियां:
दिल को छु लेने वाली रचना। बहुत ही खुबसुरत............. बधाई।
भाई के एहसासों को जीवंत करने वाली रचना ..
एक टिप्पणी भेजें