बुधवार, 23 सितंबर 2009
गाँव की याद
तन झुलसाती गर्मी बीती,
और ये पावस बीत गया,
यहाँ अजब सी हवा चली,
एक क्षण मैं कुछ सोच न पाया ,
कल तक जिन गलियों में खेला,
उनको कैसे मैं भूल गया,
साथ छूटने का गम है मुझको,
पर उसने भी न मुझे बताया,
भूल चला था मैं तुझको भी,
मेरे गाँव, आज मुझे तू याद आया।
तुझ संग कभी रहा न अकेला,
चाहे दिवाली हो दशहरे का मेला
धूप सुबह की, शाम पंक्षियों की कतार,
मन होता था हर्षित पा खुशियाँ हजार,
पर आज त्योहारों की शाम में,
तुझसे दूर बैठा हूँ एकांत में,
न कोई चहल-पहल न कोई मेला,
निहारता रहा हूँ शून्य को अकेला,
शायद कोई मुझसे मिलने आए,
बचपन की यादें ताजी कर जाए,
इसी सोच में मैंने तुझे भुलाया,
पर कोई मुझसे मिलने न आया,
भूल चला था मैं तुझको भी,
मेरे गाँव, आज मुझे तू याद आया।
-नवनीत नीरव -
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14 टिप्पणियां:
कल तक जिन गलियों में खेला,
उनको कैसे मैं भूल गया,
साथ छूटने का गम है मुझको,
पर उसने भी न मुझे बताया,
भूल चला था मैं तुझको भी,
मेरे गाँव, आज मुझे तू याद आया।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
बधाई!
गाँव याद आया जो आपके साथ ही चलता रहा है.बचपन की स्मृतियों वाला गाँव.
सुंदर.
बहुत पीछे ले गये आप!
Navneet ji ,
jab aap hindustaan mein rah kar apne gaaon ko yaad karke itne samvedansheel hain to kya aap hamari vedna ko anubhav kar paayege jo saat samundar paar har pal apne saath ek chhota sa hindustaan liye firte hain..
itna kuch ham kah gaye hain aapki kavita ka hi to asar hain..
bahut hi bhav bhini kavita...kam se kam hamen to mukhar kar gayi..
aabhar ewam dhnyawaad...
Navneet ji ,
jab aap hindustaan mein rah kar apne gaaon ko yaad karke itne samvedansheel hain to kya aap hamari vedna ko anubhav kar paayege jo saat samundar paar har pal apne saath ek chhota sa hindustaan liye firte hain..
itna kuch ham kah gaye hain aapki kavita ka hi to asar hain..
bahut hi bhav bhini kavita...kam se kam hamen to mukhar kar gayi..
aabhar ewam dhnyawaad...
आज के दिन की शुरुआत आपकी रचना से हो रही है...........और बहुत ही बढ़िया हो रही है.......
अच्छी रचना के लिए बधाई !
बहुत खुब नवनित जी । जो दर्द अपने गाँव से बिछड़ने का होता उसे आप ने बहुत ही उम्दा तरिके से प्रस्तुत किया।बहुत ही सुन्दर कविता। बधाई
अपना गाँव तो हमेशा यादों में बना ही रहता है, चाहे वो फिर कैसा ही हो। ऐसा ही बचपन के साथ है, कितना ही तकलीफ भरा हो, फिर भी याद आता है। अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई।
सुन्दर प्रस्तुति!!!
बहुत ही सुन्दर रचना/बचपन मे ले गयी जो गाँव मे ही गुजरा है/बहुत बहुत बधाई!
भाई मुहवारी भाषा का भी थोडा ज्ञान रखना, कहीं गाँव वाले फिर ये न कह दें "लौट के बुद्धू घर को आये"
अरे भाई ये तो हुई मजाक की बात, दिल पर मत ले लेना,
हर किसी को अपनी इस गलती का एहसास एक न एक दिन होता ही है, तब उसे अपने जन्मभुमि की माटी ही याद आती है.............. आपकी कविता बहुत ही सुन्दर है, लिखते रहे...............
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
धूप सुबह की, शाम पंक्षियों की कतार,
मन होता था हर्षित पा खुशियाँ हजार,
पर आज त्योहारों की शाम में,
तुझसे दूर बैठा हूँ एकांत में,
न कोई चहल-पहल न कोई मेला,
निहारता रहा हूँ शून्य को अकेला,...
.kya khoon navneet ji samajh nahi aa raha hai ..filhal to apne gaav or vo tyohaar yaad aa gaye .....bahut khoob rachna ...apni jameen se jude rehna hamari kamyabi ka hissa hai ..good luck
ye jo aap yaadon ke flash back mein le gaye na ...... emotional kar diya :-)
Gaon ki yaad taaji ho gayee. Bahut achhi lagi kavita. Badhai
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