बुधवार, 19 अगस्त 2009

कवायद

अब तो हर नज्म तेरी खातिर लिखता हूँ,
अशआरों के चंद टुकड़े भी जोड़ता हूँ,
अक्सर जबां तो चुप ही रहती है,
जब प्यार कलम पन्ने का देखता हूँ

जब भी देखता हूँ तुम्हारी खामोश नजरें,
मेरी पलकों को झुकना पड़ता है ,
होठ सकुचाते हैं मुस्कुराने में ,
मस्तक ख़ुद --ख़ुद ही झुकता है,
ये कवायद है प्यार की छुपाने की,
या तुम्हारे लिए प्यार जतलाने की
इसी उधेड़बुन में ख़ुद की झेंप,
यूँ ही छुपाने की कोशिश करता हूँ

कैसे कह दूँ प्यार करता हूँ मैं तुमसे,
इसी में अपनी कई राते खर्चता हूँ ,
अब तो आँखें भी जागने लगीं हैं ,
जब हर पहर तुम्हें सोचता हूँ,
तुम ही समझ जाओ मेरा इशारा ,
टूटते तारों से यही दुआ करता हूँ ,
सफ़ेद मुरझाये पुर्जे पड़े होते हैं दराज में,
जब कागज पर तुम्हें उकेरना चाहता हूँ

-नवनीत नीरव -

6 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया..अच्छा लगा पढ़कर.

निर्मला कपिला ने कहा…

ाक्सर ज़ुबाँ चुप रहती है-----
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई

ओम आर्य ने कहा…

कवायद बहुत ही खुब्सूरती से आपने जारी रखी है ................बहुत ही सुन्दरता से कविता मे अपने भाव को रखा है .....ऐसे ही लिखते रहे ...

प्रिया ने कहा…

wow.......romantic poetry.... badiya hai poetry bhi aur andarze baya bhi

Anjelanima_एंजेला एनिमा ने कहा…

प्यार में ऐसा ही होता है दोस्त...होठों की जुबां लड़खड़ाने लगती, तो आंखें अपने ही अठखेलियों में मशगूल होती...धड़कना दिल को पड़ता है...प्यार के अंजाम को लेकर दिल दिमाग हमेशा ही परेशान हुआ करते हैं...बहुत बढिया पढ़कर मजा आ गया।

Vandana Singh ने कहा…

navneet ji very nic poetry
mere blog par aane ke shukriya