याद है तुम्हें ,
पिछली साल की बारिश का वो दिन,
इस पार्क के कोने में ,
सीमेंट वाली वो बेंच,
जहाँ आखिरी बार हम बैठे थे,
तुम अचानक ही सिमट आई थीं,
मेरे समीप,
एक अनजाने भय से।
जबां खामोश थीं,
पर जज्बातों के बादल उमड़ आये थे,
मौसम रुआंसा हो रहा था,
दोनों के जिस्म बारिश में,
ऐसे सराबोर हो रहे थे,
मानों कोई पाल वाली नाव,
बीच समंदर में भींग रही हो।
ठण्ड से कांपते थरथराते,
तुम्हारे गुलाबी होठ,
भींग कर सफ़ेद हुए जाते थे ,
बारिश की परवाह कहाँ थी हमें,
हम तो सिर्फ रोये जाते थे,
और तुम्हारी वो आसमानी छतरी,
खुली औंधी,
न जाने कितनी देर तक,
भींगती रही थी ,
जाते वक़्त जिसे तुम,
वहीँ भूल आई थीं ।
तुम तो चलीं गयीं,
पर मैं आज भी
उसी बेंच पर आ बैठता हूँ,
हर इक बरसाती दिन में,
इस आसार में शायद,
तुम आओगी,
अपनी छतरी लेने।
फुर्सत मिले कभी
तो आकर देखना जरा ,
पार्क के उस कोने में ,
एक बरसाती फूल खिला है ,
बिलकुल तुम्हारी उस ,
खुली औंधी आसमानी छतरी जैसा ।
-नवनीत नीरव-
पिछली साल की बारिश का वो दिन,
इस पार्क के कोने में ,
सीमेंट वाली वो बेंच,
जहाँ आखिरी बार हम बैठे थे,
तुम अचानक ही सिमट आई थीं,
मेरे समीप,
एक अनजाने भय से।
जबां खामोश थीं,
पर जज्बातों के बादल उमड़ आये थे,
मौसम रुआंसा हो रहा था,
दोनों के जिस्म बारिश में,
ऐसे सराबोर हो रहे थे,
मानों कोई पाल वाली नाव,
बीच समंदर में भींग रही हो।
ठण्ड से कांपते थरथराते,
तुम्हारे गुलाबी होठ,
भींग कर सफ़ेद हुए जाते थे ,
बारिश की परवाह कहाँ थी हमें,
हम तो सिर्फ रोये जाते थे,
और तुम्हारी वो आसमानी छतरी,
खुली औंधी,
न जाने कितनी देर तक,
भींगती रही थी ,
जाते वक़्त जिसे तुम,
वहीँ भूल आई थीं ।
तुम तो चलीं गयीं,
पर मैं आज भी
उसी बेंच पर आ बैठता हूँ,
हर इक बरसाती दिन में,
इस आसार में शायद,
तुम आओगी,
अपनी छतरी लेने।
फुर्सत मिले कभी
तो आकर देखना जरा ,
पार्क के उस कोने में ,
एक बरसाती फूल खिला है ,
बिलकुल तुम्हारी उस ,
खुली औंधी आसमानी छतरी जैसा ।
-नवनीत नीरव-
10 टिप्पणियां:
अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।
waah navneet ji bahut hi khoobsoorat lagi ye rachna ek ek pankti jase lamho ko jii rahi hai ...bahut sunder ...
"jindgi ki dagar par ab tanha nikal pade hain lekar ke saath unki yaado k silsile" ..dont mind this editing
वाह नीरव जी ......आपने बहुत ही सुन्दरता से एक हसीन पल को शब्दो मे सजाकर यादो की थाली को प्रस्तुत किया है ......बधाई
utlimate hain ye to ....khoobsoorat ...... your poetry is growing day by day
तसव्वुर मे वो आ गये है
मेरे वज़ूद पर छा गये है
इतना खूबसूरत लम्हा संजोया है आपने इस सुन्दर कविता के माध्यम से कि मै भी यादो मे खो गया
kuch expressions to bahut hi zyada shaandaar hai..mausam roansa hona...aasmani chhatri..behtareen kavita
sundar bhav ,sundar kavita .badhai ho .
kya khoob chitran kiya hai aapne apne manobhavon ka......bahut hi sundar.
नवनीत जी बहुत सुन्दर प्रेमाभिव्यक्ति है तुम्हारी कलम मे रवानगी है ताकत है बहुत आगे जाओगे बहुत बहुत आशीर्वाद और बधाई
yaar kahani jaisi lagi!!! mere palade to kuch nahi pade boss, may b i dont knw much bout kavitas but yes i like traditional form of kavita,mere liye v kuch likh yaar!!!
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