गुरुवार, 28 मई 2009

भारतवासी....

(एक कविता देश के निवसियों के नाम, जो मैंने २००५ में लिखी थी.....)

टेढी मेढ़ी पगडण्डी पर,
हवाएं दौड़ा करती हैं,
पहाड़ों के सीने से लिपट कर,
घटाएं बरसा करती करती हैं,
रंग -बिरंगे पंछियों के,
जहाँ कलरव गूंजा करते हैं ,
होली के रंगों सी बोली,
सबके मन को छूती है,
भाषाएँ मीठी हैं चाहे,
मलयालम हो या पंजाबी,
गुजराती हो या संथाल,
सभी हैं भारतवासी। ।

जीवन के दो रूप यहाँ पर,
युवा शहर और प्रौढ़ गाँव,
भावुकता पहचान यहाँ की,
जैसे पेड़ों की ठंढी छाँव,
राग द्वेष की विभीषिकाओं से,
जो अभी तक है अनजान ,
एकता है सप्तरीषियों सी,
जो हमें बनाये विश्व पटल की शान।
रिश्ते शोभित हैं जैसे मौसम,
फसलें उगती जिनमें मनभावन,
वर्तमान है सुखंद यहाँ का,
और इतिहास है गौरवशाली,
गुजराती हो या संथाल,
सभी हैं भारतवासी । ।

-नवनीत नीरव -

8 टिप्‍पणियां:

Shivangi Shaily ने कहा…

ek aur achchi kosish......

:)

संगीता पुरी ने कहा…

अच्‍छा लिखा है।

Vandana Singh ने कहा…

aacchi rachna hai ...padhkar accha laga .

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

achchhi kavita

कडुवासच ने कहा…

...sundar rachanaa !!!!!

प्रिया ने कहा…

Nanhe-munne bharat ki tasveer kheench di aapne

बेनामी ने कहा…

गर्व से कहो हम सब भारतीय हैं......

साभार
हमसफ़र यादों का.......

Amit ने कहा…

yaar i think ye teri sabse badhiya rachnaaoon mein se ek hai. i did indeed luv ur poetry n wish u all d best in ur life.