मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

तेरे इंतजार में

अक्सर खड़ा पाता हूँ ख़ुद को,
कल्पनाओं की देहरी पर ,
अदृश्य रंगों की तलाश में ,
हर दिशा में उभरते -मिटते,
अधूरे बिम्बों को निहारते,
शायद कहीं मेरे प्यार सा,
कोई रंग मिल जाए

धूप गुलाबी है ,ख्वाब आसमानी हैं ,
स्वप्न रेतीले टीले हैं,
सोच बहता पानी है ,
सब अपनी-अपनी जगह बदलते ,
जब मन पर वश चलता है ,
हम भी रुक-रुक पीछे मुड़ते,
ज्यों विरह पहर सरकता है।
कभी चिडियों की कतारों के संग,
कभी बारिश की फुहारों के संग ,
कभी तारों की लड़ियों संग,
कभी मासूम तितलियों के संग

इसी सोच में शायद ,
इस क्षण तू जायेगी ,
सहेज कर रखे हैं जो ख्वाब,
उनमें रंग भर जायेगी
सच बताऊँ कभी -कभी मन ,
गीला हो जाता है प्यार में,
वेदनाएं जब सही जाती हैं ,
तेरे इंतजार में ............... ।

-नवनीत नीरव -

4 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

मन में गहरे चल रहे विचारों को अच्छा आकर दिया है आपने ..वाह

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

मनोभावो को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।

sujata sengupta ने कहा…

great poetry! aapki saari rachnaye bahut hi umda hain...take care..hope you are doing good!!

L.Goswami ने कहा…

प्यार ऐसा ही होता है ..सुन्दर कविता