कभी सोचता हूँ एक पाती लिखूं ,
सावन की रिमझिम फुहारों के नाम,
हर साल मिलने आती हैं मुझसे ,
कभी भी कहीं भी सुबह हो या शाम,
छत के मुंडेरों पर, खेतों में अमराई में ,
अनजाने सफर में रस्ता गुमनाम,
कही भी रहूँ अक्सर खोज लेती हैं मुझे ,
इसे प्यार कहूँ की दूँ कोई नाम,
कुछ कहने में शर्म आती है मुझे ,
कैसे कहूँ अपने मन की विकल तान,
इसलिये सोचता हूँ इक पाती लिखूं ,
सावन की रिमझिम फुहारों के नाम।
सावन की रिमझिम फुहारों के नाम,
हर साल मिलने आती हैं मुझसे ,
कभी भी कहीं भी सुबह हो या शाम,
छत के मुंडेरों पर, खेतों में अमराई में ,
अनजाने सफर में रस्ता गुमनाम,
कही भी रहूँ अक्सर खोज लेती हैं मुझे ,
इसे प्यार कहूँ की दूँ कोई नाम,
कुछ कहने में शर्म आती है मुझे ,
कैसे कहूँ अपने मन की विकल तान,
इसलिये सोचता हूँ इक पाती लिखूं ,
सावन की रिमझिम फुहारों के नाम।
-नवनीत नीरव -
9 टिप्पणियां:
very nice dearrr...really its hearttoching..keep it up
हिंदी लिखाड़ियों की दुनिया में आपका स्वागत। खूब लिखे। बढ़िया लिखें ..हजारों शुभकामनांए
अच्छी रचना है। शुभकामनाएं।
आपका ये दूसरा ब्लॉग देखकर खुशी हूई आपका स्वागत है
Badihi komal kalpana hai...paati rimjhim fuharonke naam...aapka "parichay" bhi bohot achhaa laga.
Swagat hai anek shubhkaamnaon sahit.
Mere blogpe aaneka sasneh nimantranbhi...!
बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
बहुत सुन्दर रचना
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है.
खूब लिखें,अच्छा लिखें
महज़ अलफाज़ से खिलवाड़ नहीं है कविता
कोई पेशा ,कोई व्यवसाय नही है कविता ।
कविता शौक से भी लिखने का नहीं
इतनी सस्ती भी नहीं , इतनी बेदाम नहीं ।
कविता इंसान के ह्रदय का उच्छ्वास है,
मन की भीनी उमंग , मानवीय अहसास है ।
महज़ अल्फाज़ से खिलवाड़ नही हैं कविता
कोई पेशा , कोई व्यवसाय नहीं है कविता ॥
कभी भी कविता विषय की मोहताज़ नहीं
नयन नीर है कविता, राग -साज़ भी नहीं ।
कभी कविता किसी अल्हड योवन का नाज़ है
कभी दुःख से भरी ह्रदय की आवाज है
कभी धड़कन तो कभी लहू की रवानी है
कभी रोटी की , कभी भूख की कहानी ही ।
महज़ अल्फाज़ से खिलवाड़ नहीं ही कविता,
कोई पेशा , कोई व्यवसाय नहीं ही कविता ॥
मुफलिस ज़िस्म का उघडा बदन ही कभी
बेकफान लाश पर चदता हुआ कफ़न ही कभी ।
बेबस इन्स्सन का भीगा हुआ नयन ही कभी,
सर्दीली रत में ठिठुरता हुआ तन ही कभी ।
कविता बहती हुई आंखों में चिपका पीप ही,
कविता दूर नहीं कहीं, इंसान के समीप हैं ।
महज़ अल्फाज़ से खिलवाड़ नहीं ही कविता,
कोई पेशा, कोई व्यवसाय नहीं ही कविता ॥
KAVI DEEPAK SHARMA
http://www.kavideepaksharma.co.in
http://www.Shayardeepaksharma.blogspot.com
आपका चिट्ठा जगत में स्वागत है निरंतरता की चाहत है
मेरे ब्लॉग पर पधारें आपका स्वागत है
एक टिप्पणी भेजें