जब नीयत ही बिगड़ गई है,
घर में सेंध मारने की आदत पड़ गयी है ,
फिर कैसा शर्माना-घबराना,
टुकड़े-टुकड़े क्या ले जाना,
कभी गुर्दे, कभी जिगर, कभी फेफड़े,
कब तक ढोते रहोगे,
ऐसा करने से नुकसान तुम्हारा ही है
कुछ बोटी-चमड़ी बची बेकार रह जाएगी,
एक काम करो मुझे एक बार ही बेच दो,
बार-बार तुम्हारी नीयत तो न भरमायेगी.
-नवनीत नीरव-