मैंने समझाया था गौरैया को
मैंने समझाया था गौरैया को,
घर का मालिक अब नहीं रहा किसान,
खेत खलिहान में लगाकर आग ,
सबने खड़े किए हैं पक्के मकान.
खड़ी इमारतों की खिड़कियाँ बड़ी हैं जरूर,
तंग सींकचों से तू कैसे पार पाएगी,
जमीन की माटी कंक्रीट हो गयी है,
घोंसले की खातिर तिनके कहाँ से लायेगी,
शहर गाँव सब बदल रहे,
लोग खुद के स्वार्थ में घुल रहे,
मोबाईल, पौलिथिन ही है अब जिंदगी,
तेरे समूल नष्ट करने के प्रयोजन बन रहे,
अब ओ तेरी शहादत का दिवस घोषित हुआ,
बीस मार्च "विश्व गौरैया दिवस' मना,
खेतों में फसल दर फसल जहर ही उग रहे,
खुद को खत्म करने का उद्यम कर रहे.
छोड़ इन गलियारों को,
कर ले रुख तू जंगल का,
बात मेरी मान,
वहां आज भी तेरे अपने हैं,
जो रखेंगे तेरा मान सम्मान.....
- नवनीत नीरव -