(इस इस कविता में एक गाँव की छोटी सी बच्ची जो बरसात नहीं होने से परेशां है। उसके मन में कई विचार आते हैं। बादल को अपना भाई मानकर वह उनसे कुछ कहती है )
कई दिनों से राह देखती,
मेरी आँखें पथराती,
ग्रीष्म की गर्म हवाओं से ,
भेजी थी मैंने तुमको पाती ,
तीक्ष्ण धूप से तन हुए श्यामल ,
कोई भी बात अब नहीं सुहाती ,
आषाढ़ मास अब जाने को है ,
हर पल याद तुम्हारी आती ,
हमें भूल गए तुम बादल भैया ,
जो याद हमारी तुम्हें नहीं आती ।
गाँव के लोग पूछा करते हैं ,
ताल तलैया सूख चुके हैं ,
पंक्षी कौन सा गीत सुनाएं ?
उनके कंठ अवरुध्द पड़े हैं ,
गर्मी से व्याकुल हैं सब ,
बच्चे सारे खामोश पड़े हैं ,
किसान निहारते खुले आकाश को ,
धान की पौध तैयार खड़ी हैं ,
किस- किस की अब बात लिखूं मैं?
हर और अब बस यही खबर सुनाती ,
हमें भूल गए तुम बादल भैया ,
जो याद हमारी तुम्हें नहीं आती ।
अब सावन आने वाला है ,
आशा लिए हुए हर बाल मन ,
जुटे हुए हैं तयारी में ,
किस नीम पे होगा अबके झूलन ,
सखियों ने भी शुरू किया है ,
दादरा कजरी का स्वरवन्दन ,
इसी माह आती है राखी ,
हम तुम मनायेंगे हंसी ख़ुशी ,
भूल न जाना इसी बात को ,
एक बहन रहेगी राह तकती ,
अगर तुम न आये इस सावन में ,
मेरी आशाओं पर फिरेगा पानी ,
क्या जवाब दूँगी सखियों को ,
जो यह कह कर हैं मुझे सताती ,
भूल गए तुम्हें बादल भैया ,
जो याद तुम्हारी उन्हें नहीं आती ।
जो याद तुम्हारी उन्हें नहीं आती।
-नवनीत नीरव -