शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

वह बच्चा गन्दा है...


(आजकल सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों के साथ काम करते वक्त उनके अनुभवों से दो-चार होने का मौका मिला है.)

उसका बेपरवाह बाप,
करता रहता मजदूरी,
पीता है शराब,
लड़ता-झगड़ता अक्सर,
गली -मोहल्ले में,
वह बच्चा गन्दा है.

उसकी अनपढ़ माँ,
साफ़ करती है बर्तन,
चूल्हा-चौका टोले में,
करती है तेल-मालिश,
बड़े घर की औरतों की,
वह बच्चा गन्दा है.

उसका कच्चा घर,
गाँव से बाहर बसी ,
झुग्गी-झोपड़ियों की बस्ती में,
गंदे टीले और नालियों के बीच,
पलते जहाँ आवारा कुत्ते,
वह बच्चा गन्दा है.  

उसके दोस्त,
गन्दी बस्ती के हमउम्र,
खेलते माटी-पानी दिनभर,
चराते हुए भैंस, बकरियाँ,
नहाते हैं आहर में,
वह बच्चा गन्दा है.

उसका स्कूल,
बस्ती का सरकारी भवन,
पोशाक नीला-आसमानी निकर-शर्ट,
खाता मध्याह्न भोजन,
बोलता स्थानीय बोली.
वह  बच्चा गन्दा है.

- नवनीत नीरव-