हम- तुम मन की कोई बात बताओ मुझको तुम ,रहती हो खामोश सदा अक्सर गुमसुम ,कभी- कभी ही दिख पाती है मुस्कान तुम्हारीदिल ही दिल में क्या बुनती रहती हो हरदमयही सोचता रहता हूँ मैं कभी तो बातें होंगी मन को हलकी करने वाली कुछ मुलाकातें होंगीजज्बातों को काबू करना कोई तो सीखे तुमसेउम्मीदों को ख्वाब बनाना कोई तो सीखे तुम सेआओ कोई बात करें और साथ चलें हम- तुमएक नए सफर की शुरुआत करें हम- तुम । -नवनीत नीरव –