रविवार, 12 अप्रैल 2009

बचपन का घर

कोई मेरे बचपन का घर बना दे,
यादों की तस्वीरें दीवारों पर चिपका दे ,
बरबस याद जाती हैं कभी जो,
अनजानी राहों पर चलना सिखा के

छुप कर जाने क्यों रोया करता,
अंधेरे में बिस्तर से ख़ुद को छिपा के ,
छोटी सी बात पर जो उमड़ आती दिल से ,
मधुर सिसकियों की वो घंटियाँ दरवाजे से लटका दे

दौड़ता भागता कितनी तितलियों के पीछे,
उनके चटकीले पंखों का आमंत्रण पा के,
खुले मैंदान से निहारता अकसर सूरज को ,
कोई उसकी किरणों से बत्तियां जला दे ,

अक्सर भाग जाता हरे खेतों की तरफ़ ,
चुपके से ख़ुद को सबसे छुपा के ,
सरसों अरहर के प्यारे पीले फूलों से ,
कोई हर कोने में फूलदानों को सजा दे

क्या बताऊँ कैसे करता था बेबाक नादानियाँ ,
सपनों का हकीक़त से सामना करा के ,
गुस्सा हो जा बैठता जिस आम तले ,
कोई उसकी बोनसाई बालकनी में लगा दे

जिनके संग करता रहा मनमानी ,
बिछडे उन दोस्तों को मुझसे मिला दे ,
प्यारी नानी उसकी परियों की कहानियाँ ,
कोई प्यार से मुझको फिर से सुना दे

कई बार बनाई हैं रंग बिरंगी नावें,
कापी के पन्नों से हर सावन में ,
कहीं भूल जाऊं इन प्यारे ख्वाबों को,
कोई इन तहरीरों की गठरी बना दे

-नवनीत नीरव -