अमावस की रात, जब अँधेरी हो जाती है,
स्याह -सा लगता है, यह सारा जमाना,
तवे पर जब कभी कालिख जम जाये,
मुश्किल होता है तब उसको मिटाना,
एक दीपशिखा जो युगों तक जलती है,
अनवरत संसार के हर तम् हरती है,
हर बार दीयों की कोशिश यही होती है,
मिलकर संसार से है अँधेरा मिटाना।
एक ही गुजारिश तुमसे इस बार,
एक दीया, मेरे दोस्त तुम भी जलाना।।
जब -जब मन के फासले बढेंगे,
कहाँ पुराने रिश्ते अच्छे हाल में रहेंगे?
अँधेरा रहता है इस ताक में बैठा,
लोग कब एक दूजे से उलझेंगे,
अक्सरहां गिला हम कर जाते हैं उनसे,
करीब जो लोग हमारे होते हैं सबसे,
मन के दरमयां जो अँधेरा है फैला,
कोशिश हो उसको हर हाल में मिटाना। ।
गुजारिश है तुमसे, कोई दिल न दुखाना,
एक दीया,मेरे दोस्त तुम भी जलाना।।
-नवनीत नीरव-