कुछ ख़्वाब सिरहाने हैं...
[कविताएं - जिनके साथ मैंने कुछ वक्त बिताये हैं]
मंगलवार, 7 जुलाई 2009
परदेशी
सावन में इस बार,
फिर से झमका पानी,
याद आ गई उस,
नवयवना की कहानी,
पूरे सावन बैठ झूले पर,
कजरी गाती रहती ,
परदेशी पिया की याद में ,
अक्सर खोयी रहती,
इस आशा में शायद,
परदेशी लौट आए,
फिर से उसका यह सावन
हरा भरा हो जाये।
- नवनीत नीरव -
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