सोमवार, 8 जुलाई 2013

मेरे बेतरतीब ख्याल


तुम कवि हो,
शायर हो,
फनकार हो,
या फिर कोई कलाकार हो,
तुम जो भी हो,
तुम्हारी नज्में, कवितायेँ,
एक सम्मोहन सा रचती हैं,
सात रंगों की अद्भुत,
त्रिविमीय इन्द्रधनुषी छटाएं.
जिन्हें छू सकता हूँ मैं.

नज्में जिन्हें तुम जब उछालते हो,
पास आते-आते,
कई मायने बदलते- बदलते,
मुझे आकर घेर लेती हैं,
मानों उमड़ती-घुमड़ती काली घटाएं,
मेरे छत-बागीचों पर चू कर,
सफ़ेद धुएं सी फ़ैल गई हों,
एक वादी से दूसरी वादी तक,
एक गाँव से दूसरे गाँव तक,
मंजर जादुई सा लगने लगा है.

कभी यूँ लगता है कि,
लीकर वाले चाय की प्याली में,
डाल दी गई हों कुछ सुगर क्यूब्स,
हर घूँट के साथ जयका बढ़ता ही जाता है,
और आखिरी घूँट फिर से तैयार कर देती है,
अगली प्याली के लिए.

कभी लगता है जैसे पिला दी हो किसी ने,
ठंडी बीयर पहली बार,
दुनिया हौले से झूमती सी लगती है,
बीतते समय के साथ,
खुमारी बढ़ते हुए,
आँखों की सफेदी पर लाल तारों सी उभर आई हो,
पहली बार हल्का नशा हुआ हो.

कभी यूँ भी लगता है कि,
मेरे दिमाग में होने लगी हो आतिशबाजियां,
हल्का सा शोर करता हुआ शरारा,
आसमान की तरफ लपका हो,
जमीं पर बढती हुई अपनी पूँछ टिकाये,
दूर कहीं स्याह आसमान पर,
खिल गए हों गुलशन हर तरफ,
अचानक किसी ने खोल दिया हो,
दरवाजा परीलोक का.

इतना सब कुछ यूँ ही नहीं घट जाता है,
मादकता है जो असर करती है,
बिम्ब जो जलते-बुझते हैं,
तुम जो भी हो कमाल करते हो,
यूँ बातें बेवजह करते-करते,
मेरे ख्याल बेतरतीब करते हो.


-नवनीत नीरव-