पहाड़ों का दर्द कहाँ ठहरता है ,
वह तो उन्मुक्त झरनों संग बहता है ।
वह तो उन्मुक्त झरनों संग बहता है ।
गम कितने ही गहराई में छिपे हों दिल के ,
आंसू का एक कतरा ही उन्हें कम करता है ।
यूँ कभी ऐसा होता नहीं, जिंदगी गम में जले ,
गम तो अंधेरों में जुगनू सा जलता-बुझता है।
फासले-दरम्यान कैसे भी हों दिलों के ,
स्नेह का एक धागा उन्हें जोड़ सकता है ।
अक्सर स्याह रातों में भटकता है मेरा मन ,
पर एक तीली का प्रकाश मार्ग लक्षित करता है ।
- नवनीत नीरव -