गुरुवार, 30 अप्रैल 2009

सपने

( इस हफ्ते मुझे भुबनेश्वर स्थित एक गैर सरकारी संस्था बकुल फौन्डेशन में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआयह संस्था बच्चों के लिए काम करती है तथा उनके पढ़ने की आदत बनाये रखने की खातिर बच्चों की एक लाइब्रेरी भी चलाती हैउस संस्था में एक हस्तलिखित पत्रिका रखी हुई है , जिसमें आगंतुक और बच्चे अपने विचार , कहानियाँ और कविताएँ लिखते हैंमैंने भी उस पत्रिका में बच्चों के लिए एक संदेश कविता के मध्यम से लिखा हैमुझे ज्यादा वक्त वहाँ मिला नही था कि मैं बहुत अच्छे ढंग से कुछ लिख सकूँबस मैंने कलम उठाई और जो मेरे मन में आया था उस समय , उसे लिख दियाउसी कविता को हूबहू आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ आशा है आपको पसंद आएगी।)

कभी- कभी बीती बातें,
और कुछ सुहाने पल,
आंखों में उतर आते हैं ,
जब नानी परियों की कहानी सुनाती है ,
माँ रात में लोरियां गाती है ,
पापा कुछ पुरानी बातों की,
पोटली खोल देते हैं,
जब उन्हें तुममें ,
अपना बचपन दिखता है

ये सब सिर्फ़
कहने सुनने की बातें या,
किस्से -कहानियों की बातें नहीं होतीं,
ये सपने होते हैं ,
जिन्हें उन्होंने कभी देखा था ,
पर आज जो अधूरे हैं
उनकी कोशिश यही रहती है ,
तुम भी उन जैसे ही सपने देखो

यह जरूरी नही है ,
सारे सपने पूरे हों ,
पर सपने आगे बढ़ने की,
कुछ कर गुजरने की,
प्रेरणा देते हैं

इसलिए आओ हम सभी,
कुछ सपने देखें,
कुछ रंगीन सपने,
कुछ रंगहीन सपने,
कुछ करें,
उन्हें पूरा करने के लिए,
ताकि हमारे सपने,
अधूरे रह जायें
कहते है ,
यदि सपने सच्चे हों ,
तो जरूर पूरे होते हैं

-नवनीत नीरव-