बुधवार, 19 अगस्त 2009

कवायद

अब तो हर नज्म तेरी खातिर लिखता हूँ,
अशआरों के चंद टुकड़े भी जोड़ता हूँ,
अक्सर जबां तो चुप ही रहती है,
जब प्यार कलम पन्ने का देखता हूँ

जब भी देखता हूँ तुम्हारी खामोश नजरें,
मेरी पलकों को झुकना पड़ता है ,
होठ सकुचाते हैं मुस्कुराने में ,
मस्तक ख़ुद --ख़ुद ही झुकता है,
ये कवायद है प्यार की छुपाने की,
या तुम्हारे लिए प्यार जतलाने की
इसी उधेड़बुन में ख़ुद की झेंप,
यूँ ही छुपाने की कोशिश करता हूँ

कैसे कह दूँ प्यार करता हूँ मैं तुमसे,
इसी में अपनी कई राते खर्चता हूँ ,
अब तो आँखें भी जागने लगीं हैं ,
जब हर पहर तुम्हें सोचता हूँ,
तुम ही समझ जाओ मेरा इशारा ,
टूटते तारों से यही दुआ करता हूँ ,
सफ़ेद मुरझाये पुर्जे पड़े होते हैं दराज में,
जब कागज पर तुम्हें उकेरना चाहता हूँ

-नवनीत नीरव -