साधो! क्यों पाया यह जीवन,
जो यूँ ही अब रीत गया.
कर्ज मिला कुछ, कर्ज लिया कुछ,
रिश्ते नातों में खर्च किया कुछ,
फिर चुकते-चुकाते बीत गया.
कुछ कर्ज था अपनी जननी का,
जन्मभूमि , कर्मभूमि का,
शेष धर्म-श्राद्ध का गान हुआ.
खाली हाथ आना, खाली हाथ जाना,
बही खाते का हिसाब चुकाना,
आने वालों का यही लक्ष्य हुआ.
-नवनीत नीरव-