कुछ ख़्वाब सिरहाने हैं...
[कविताएं - जिनके साथ मैंने कुछ वक्त बिताये हैं]
रविवार, 22 जून 2014
सिलवटें
सिलवटें,
गुजरे पलों की,
अगर छू भी जाएँ,
एक दर्द सा सिहरता है,
और हम,
रखकर एक हाथ
अपने दिल पर,
एक बंद आँखों पर,
औंधे हुए हैं बिस्तर पर,
वक्त की कीलें बहुत नुकीली हैं,
चुभ जाएँ तो खून नहीं निकलता,
सिर्फ आह निकलती है...
नवनीत नीरव
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