टुकडों में मुझसे तुम मिला न करो ,
सपने जो सच न होंगे बुना न करो।
मैं तनहा ही खुश हूँ जिंदगी से मगर ,
मझधार की लहरों में मुझे खड़ा न करो ।
तुम्हारा सानिध्य सुकून देता है मुझे ,
ज्यादा कुछ कहूं इसकी आशा न करो।
मंद हवा के झोंके राहत देते हैं मुझे ,
तूफानों में मुझ दीपक को जलाया न करो।
मैं काफिर हूँ ख़बर तो होगी तुम्हें ,
मेरी हर ओर सरहदें न बनाया करो।
- नवनीत नीरव -
5 टिप्पणियां:
टुकडों में मुझसे तुम मिला न करो ,
सपने जो सच न होंगे बुना न करो ,
" जिन्दगी का सच तो यही है की आधा अधुरा टुकडों में कुछ भी तो अच्छा नहीं लगता.......लकिन पूर्णता से सब कुछ मिलता भी नहीं.......ये दो पंक्तियाँ ही बेहद प्रभावशाली बन गयी..."
Regards
again great thoughts...love always binds, builds walls, expects, and fails to return..a love that is free of conditions..is but a dream!!
behad hi sundar vichar
achcha to tum likhte hi ho lekin ek bar phir se khud ko saabit kiya hai tumne
kaya bat hai .... bahut achhe
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