बाघ
के लिए भी टेढ़ी खीर है,
जान
से मार देना उनको,
वो
स्थायी सींग वाले,
बलशाली
मृग हैं,
पर चपलता उनके जैसी नहीं,
कोई
धूर्त आसानी घात लगाकर,
कर
लेता है उनका शिकार,
‘कि जैसा इस बार किया सरकारों ने’।
बताते
हुए चाचा रुकते हैं,
तनिक
दम भरते हुए कहते हैं
‘दूसरे मुलुक के दानव ठहरे’
किसान-समस्याओं
का आसान हल
घोड़परास
सेकुलर-समाजवादी नहीं हैं न!
इस्तीफ़ा-इस्तीफ़ा
का खेला बंद,
एक
राज्य हमेशा जस्टिफ़ाई करता है
'नृशंस समूहिक हत्याकांड' को
राजनीति
कुछ भी कर सकती है!
भहराते
हुए नीलघोरों देखा है कभी,
मूक...छटपटाना...बिलबिलाना,
कि
जैसे आँगन में गिरता है कटा हुआ वृक्ष,
इधर
मादाएँ सदमें में हैं
‘मारा तो सिर्फ़ नरों को’
उधर
खेत की मेढ़ पर लहलहाते हैं,
‘बेटी बचाओ’ के पोस्टर...
-नवनीत नीरव-